Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःउन्मादिनी


वैश्या की लड़की
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आर्थिक कठिनाइयाँ कभी बाधा बनकर उनके इस सुख के सामने खड़ी हो जाएँगी, प्रमोद को इसका ध्यान भी न था। कॉलेज के प्रोफेसरों और प्रिंसिपल की उनके साथ बड़ी सहानुभूति थी। उनका आचरण कॉलेज में बड़ा उज्ज्वल रहा था और वे परीक्षाओं में सदा पहले ही आए थे। इसलिए वह थोड़ा प्रयत्न करने पर वहाँ प्रोफेसर हो सकते थे। परंतु सुख की आत्मविस्मृति तक बाह्य आवश्यकताओं की पहुँच कहाँ?

कॉलेज में एक हिंदी के प्रोफेसर का स्थान खाली भी हुआ, किंतु प्रमोद अपने सुख में इतना भूल गए थे कि उन्हें और किसी बात का स्मरण ही न रहा। उनके मित्रों और छाया ने एक-दो बार उनसे इस पद के लिए प्रयत्न करने के लिए कहा भी; किंतु उनका यह उत्तर सुनकर 'छाया, क्‍यों मुझे अपने पास से दूर भगा देना चाहती हो' छाया चुप हो गई। उसे अधिक कहने का साहस न हुआ। वह प्रमोद के भावुक स्वभाव से भली-भाँति परिचित थी। छोटी-छोटी साधारण बातों का भी उनके हृदय पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता था।

यौवन-जनित उन्माद और लालसाएँ चिरस्थायी नहीं होतीं। इस उन्माद के नशे में जिसे हम प्रेम का नाम दे डालते हैं वह वास्तव में प्रेम नहीं, किंतु वासनाओं की प्यास मात्र है। लगातार छै महीने तक छाया के साथ रहकर अब प्रमोद की आँखों में भी छाया के प्रेम और सौंदर्य का वह महत्त्व न रह गया था जो पहिले था। अब वह नशा कहाँ था? उन्हें अपने कर्तव्याकर्तव्य का ज्ञान हुआ, उन्हें अब ऐसा जान पड़ता जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ी भूल कर डाली है। आर्थिक कठिनाइयाँ भी उन्हें पद-पद पर शूल की तरह कष्ट पहुँचा रही थीं।

इसके अतिरिक्त माता-पिता के स्नेह का अभाव उन्हें अब बहुत खटक रहा था। उनका चित्त व्याकुल-सा रहता, बार-बार उस स्नेह की शीतल छाया में दौड़कर शांति पाने के लिए उनका चित्त चंचल हो उठता। माता-पिता के स्नेह में जो शीतलता, ममता का मधुर दुलार और जो एक प्रकार की अनुपम शांति मिलती है, वह उन्हें छाया के पास न मिलती छाया के प्रेम में उन्हें सुख मिलता था, शांति नहीं; स्नेह मिलता, पर शीतलता नहीं; आनंद मिलता पर तृप्ति नहीं।

हाँ, प्यास और तीव्र होती जान पड़ती । आनंद और सुख के जलन की मात्रा अधिक मालूम होती। वे माता-पिता के स्नेह के लिए अत्यधिक विकल रहते; किंतु जब माता-पिता ने ही उन्हें अपने प्रेम के पलने से उतारकर अलग कर दिया, तब स्वयं उनके पास जाकर उनके प्रेम और दया की भिक्षा माँगना प्रमोद के स्वाभिमानी स्वभाव के विरुद्ध था। प्रमोद का स्वास्थ्य भी अब पहले जैसा न रह गया था। दुश्चिंताओं और आर्थिक कठिनाइयों के कारण वे बहुत कृश और विक्षिप्त-से रहते।

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